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सोमवार, 30 दिसंबर 2024

आरती कुंजबिहारी की,श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की।

आरती कुंजबिहारी की,श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की

"आरती कुंजबिहारी की" एक प्रसिद्ध भक्ति गीत है, जो भगवान श्री कृष्ण के प्रति गहरी श्रद्धा और प्रेम को व्यक्त करता है। इस गीत का मुख्य विषय श्री कृष्ण की दिव्यता, सुंदरता और उनके अद्वितीय रूपों का वर्णन है। यह गीत भगवान श्री कृष्ण की आरती के रूप में गाया जाता है और विशेष रूप से भक्तों द्वारा उनकी पूजा के समय गाया जाता है।

गीत का भावार्थ और विवरण:

1.      "आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की":- इस शेर में भगवान श्री कृष्ण को विभिन्न नामों से सम्बोधित किया गया है, जैसे "कुंजबिहारी" (जो वृंदावन के कुंजों में बसा है), "गिरिधर" (गिरिराज गोवर्धन को उठाने वाले), और "कृष्ण मुरारी" (मुरारी का अर्थ है मुर की मुरारी या राक्षसों का संहार करने वाला)। आरती के माध्यम से भक्त उनके अनंत रूपों और गुणों का गुणगान कर रहे हैं।

2.      "गले में बैजंती माला, बजावै मुरली मधुर बाला":- श्री कृष्ण की सुंदरता का चित्रण करते हुए बताया गया है कि उनके गले में बैजंती माला (एक प्रकार की फूलों की माला) है और वह मधुर मुरली बजाते हुए बाला (किशोर) के रूप में नजर आते हैं। उनकी मुरली की आवाज अत्यंत मीठी होती है, जो सभी को आकर्षित करती है।

3.      "श्रवण में कुण्डल झलकाला, नंद के आनंद नंदलाला":- इस पंक्ति में श्री कृष्ण के कानों में कुण्डल (बालियां) के बारे में बताया गया है, जो उनकी सुंदरता को और भी बढ़ाते हैं। साथ ही यह भी कहा गया है कि श्री कृष्ण नंदनंदन (नंद बाबा के पुत्र) हैं, जो नंद के आनंद का कारण हैं।

4.      "गगन सम अंग कांति काली, राधिका चमक रही आली":- भगवान श्री कृष्ण का शरीर आकाश के समान उज्ज्वल और सुंदर है। उनके साथ राधिका (राधा) भी चमक रही हैं, जो उनके प्रेम और महिमा का प्रतीक हैं।

5.      "लतन में ठाढ़े बनमाली; भ्रमर सी अलक, कस्तूरी तिलक, चन्द्र सी झलक":- श्री कृष्ण के शरीर पर एक अद्वितीय आभूषण है – उनका मुकुट और उनके बाल भ्रमर (मधुमक्खी) की तरह लहराते हैं। उनके माथे पर कस्तूरी का तिलक और चेहरे पर चंद्रमा जैसी चमक है। इन सभी रूपों से उनकी दिव्यता और आकर्षण का वर्णन किया गया है।

6.      "कनकमय मोर मुकुट बिलसै, देवता दरसन को तरसैं":- श्री कृष्ण के सिर पर सुनहरे मोर मुकुट है, जो अत्यधिक चमकदार है। उनकी ऐसी आकर्षक रूप रेखाएं हैं कि देवता भी उनके दर्शन के लिए तरसते हैं।

7.      "गगन सों सुमन रासि बरसै; बजे मुरचंग, मधुर मिरदंग":- श्री कृष्ण के आसपास आकाश से फूलों की वर्षा हो रही है और मुरचंग (एक प्रकार का वाद्ययंत्र) और मृदंग (ढोल) की मधुर ध्वनियाँ सुनाई दे रही हैं। यह दृश्य वृंदावन की मधुरता और रासलीला के आनंद को व्यक्त करता है।

8.      "जहां ते प्रकट भई गंगा, कलुष कलि हारिणि श्रीगंगा":- यह पंक्ति भगवान श्री कृष्ण के जन्म स्थल, वृंदावन और उनके साथ जुड़ी गंगा नदी का उल्लेख करती है। श्री कृष्ण के चरणों के स्पर्श से गंगा के जल में शुद्धि और पवित्रता का आभास होता है।

9.      "चमकती उज्ज्वल तट रेनू, बज रही वृंदावन बेनू":- यहां वृंदावन के सुंदर तटों का वर्णन है, जहाँ की रेत चमकती है और वहां की बांसुरी की ध्वनि वातावरण में गूंज रही है। वृंदावन की मृदु और आकर्षक बंशी की आवाज वातावरण को मधुर बनाती है।

10.  "चहुं दिसि गोपि ग्वाल धेनू; हंसत मृदु मंद, चांदनी चंद":- वृंदावन के चारों ओर गोपियाँ, ग्वाल और गायें हैं। सभी बहुत खुश और आनंदित हैं। चांदनी रात में वातावरण बहुत सुंदर और शांतिपूर्ण है।

11.  "कटत भव फंद; टेर सुन दीन भिखारी की":- भगवान श्री कृष्ण की आराधना से भक्तों के सारे सांसारिक बंधन कट जाते हैं। उनकी महिमा सुनकर दीन-हीन व्यक्ति भी परम आनंद और शांति प्राप्त करते हैं।

समाप्ति में इस आरती के माध्यम से भक्तों ने श्री कृष्ण के सभी रूपों, गुणों, उनकी मधुरता और दिव्यता का उल्लासपूर्वक गायन किया है। यह आरती श्रद्धा, प्रेम और भक्ति की भावना से भरपूर होती है, जो श्री कृष्ण के अनंत रूपों को प्रदर्शित करती है।

आरती कुंजबिहारी की,श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की।

गले में बैजंती माला,बजावै मुरली मधुर बाला।

श्रवण में कुण्डल झलकाला,नंद के आनंद नंदलाला।

गगन सम अंग कांति काली,राधिका चमक रही आली।

लतन में ठाढ़े बनमाली;भ्रमर सी अलक, कस्तूरी तिलक,

चन्द्र सी झलक;ललित छवि श्यामा प्यारी की॥

श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की॥

आरती कुंजबिहारी की

श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥ x2

कनकमय मोर मुकुट बिलसै,देवता दरसन को तरसैं।

गगन सों सुमन रासि बरसै;बजे मुरचंग, मधुर मिरदंग,

ग्वालिन संग;अतुल रति गोप कुमारी की॥

श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की॥

आरती कुंजबिहारी की

श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥ x2

जहां ते प्रकट भई गंगा,कलुष कलि हारिणि श्रीगंगा।

स्मरन ते होत मोह भंगा;बसी सिव सीस, जटा के बीच,

हरै अघ कीच;चरन छवि श्रीबनवारी की॥

श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की॥

आरती कुंजबिहारी की

श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥ x2

चमकती उज्ज्वल तट रेनू,बज रही वृंदावन बेनू।

चहुं दिसि गोपि ग्वाल धेनू;हंसत मृदु मंद,चांदनी चंद,

कटत भव फंद;टेर सुन दीन भिखारी की॥

श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की॥

आरती कुंजबिहारी की

श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥ x2

आरती कुंजबिहारी की,श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥

आरती कुंजबिहारी की,श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥

आरती कुंजबिहारी की

श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥ x2

मंगलवार, 17 दिसंबर 2024

हनुमान जी हनुमान जी

 हनुमान जी हनुमान जी

"हनुमान जी हनुमान जी" एक अत्यधिक लोकप्रिय भक्ति गीत है, जो भगवान हनुमान की महिमा और उनके प्रति श्रद्धा को व्यक्त करता है। इस गीत में भगवान हनुमान के महान गुणों और उनकी शक्ति का गान किया गया है। इसे भक्तों द्वारा भगवान हनुमान से आशीर्वाद प्राप्त करने और उनके द्वारा कष्टों से मुक्ति पाने की प्रार्थना के रूप में गाया जाता है।

गीत के प्रमुख भावनात्मक बिंदुओं को निम्नलिखित रूप में समझा जा सकता है:

1.      भगवान हनुमान की दया और भक्तों के प्रति कृपा: गीत की शुरुआत में भगवान हनुमान से यह प्रार्थना की जाती है कि वे अपनी दया और कृपा से भक्तों के जीवन को समृद्ध करें। जो भी श्रद्धा और विश्वास से उनके दर पर आए, उनकी झोलियाँ भर दी जाएं। यह भगवान हनुमान की कृपा और उनके द्वारा भक्तों की परेशानियाँ दूर करने के प्रतीक के रूप में देखा जाता है।

2.      हनुमान जी की महिमा: हनुमान जी के बारे में कहा जाता है कि वे रघुकुल के प्यारे, बलशाली और दीन-हीन के सहायक हैं। वे भगवान राम के परम भक्त हैं और उनकी महिमा का गुणगान किया गया है। साथ ही, भगवान हनुमान को बल, साहस, और शक्तियों का अवतार माना जाता है, जो हमेशा अपने भक्तों के कष्टों का निवारण करते हैं।

3.      हनुमान जी का आध्यात्मिक रूप: भगवान हनुमान को "गुणवान योद्धा", "दाता कपीश्वर" और "करुणा के सागर" के रूप में पुकारा जाता है। यह दर्शाता है कि वे न केवल शारीरिक रूप से शक्तिशाली हैं, बल्कि वे दया, करुणा और ज्ञान के स्रोत भी हैं। उनका प्रत्येक रोम भगवान का वास स्थल है, जो यह संकेत करता है कि वे भगवान राम के अंश हैं और उनके बिना सब कुछ अधूरा है।

4.      हनुमान जी का कार्यक्षेत्र: गीत में यह उल्लेख किया गया है कि हनुमान जी की शक्ति से भूत-प्रेत और पिशाच भी भयभीत रहते हैं। जहाँ-जहाँ हनुमान जी की शक्ति होती है, वहाँ कोई बुरी शक्ति टिक नहीं सकती। यह दर्शाता है कि हनुमान जी के प्रभाव से कोई भी बुराई या संकट उनके भक्तों को नहीं छू सकता।

5.      हनुमान जी के दिव्य कार्य: भगवान हनुमान की भूमिका का विवरण करते हुए कहा जाता है कि वे सूर्य और चंद्रमा जैसे दिव्य ग्रहों के शशि और रवि के कष्ट हरते हैं। वे न केवल व्यक्तिगत परेशानियों को दूर करते हैं, बल्कि समस्त संसार की खुशहाली के लिए भी कार्य करते हैं। उनका कार्य सभी के मनोरथ को पूर्ण करना और उनके जीवन को सुखमय बनाना है।

6.      हनुमान जी का लंका दहन: गीत में हनुमान जी के लंका दहन करने की घटना का भी उल्लेख किया गया है, जो रामायण में एक प्रमुख घटना है। इसे उनके साहस, बल और भगवान राम के प्रति उनकी निष्ठा का प्रतीक माना जाता है। हनुमान जी की यह घटना यह दिखाती है कि वे बुराई का नाश करने और सत्य की विजय के लिए हमेशा तत्पर रहते हैं।

कुल मिलाकर, यह गीत भगवान हनुमान के शौर्य, बल, कृपा, और उनके भक्तों के प्रति अपार प्रेम का उत्सव है। इसमें उनकी शक्तियों का गुणगान किया गया है और यह भक्तों को प्रेरित करता है कि वे अपने कष्टों से मुक्ति पाने के लिए भगवान हनुमान की शरण लें। यह भक्ति गीत उनके प्रति श्रद्धा और विश्वास को व्यक्त करने का एक सुंदर माध्यम है।

हनुमान जी हनुमान जी

दया भक्तों पे करदो हनुमान जी

तेरे द्वार पे जो आए फूल भावना के लाए

उनकी झोलियाँ भर दो हनुमान जी

हे कंचन वर्ण प्रभु रघुवर के प्यारे

दीन हीन निर्बल के संग सहारे

तेरे चरण कमलों में आए पुजारी

हे बलवंत कीजो रे रक्षा हमारी

बजरंगबली

हे गुणवान योद्धा हे दाता कपीश्वर

गुणवान योद्धा हे दाता कपीश्वर

तेरे रोम रोम में रमे हुए हैं ईश्वर

हे वेदों के ज्ञाता हे करुणा के सागर

नहीं कोई श्रष्टि में तेरे बराबर

बजरंगबली

जो सिंदूर श्रद्धा से करते हैं अर्पण

उन्हें तुझसे मिलता है सुख शांति और धन

जहाँ पर तुम्हारी है शक्ति के पहरे

वहां भुत टिकते ना पिशाच ठहरे

बजरंगबली

तुम्हीं कष्ट हरता शशि और रवि के

तुम करते मनोरथ हो पुरे सभी के

सुनो रे हे लंका दहन करने वाले

तुम्हीं तो खिवैया हो जग के निराले

बजरंगबली

हे भोले शंकर पधारो बैठे छिप के कहाँ ।

 हे भोले शंकर पधारो बैठे छिप के कहाँ 

"हे भोले शंकर पधारो" एक भावुक और भक्ति से ओत-प्रोत गीत है जो भगवान शिव, विशेषकर गंगाधर महादेव की महिमा और कृपा की प्रार्थना करता है। इस गीत में भक्त अपनी समस्याओं और कष्टों से उबरने के लिए शिवजी की कृपा की कामना करता है और उनसे आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए निवेदन करता है।

गीत के प्रमुख भावनाओं को निम्नलिखित बिंदुओं में समझा जा सकता है:

1.      शिव की कृपा की प्रार्थना: गीत की शुरुआत में भक्‍त भगवान शिव से आग्रह करता है कि वे अपने गंगा के साथ पधारें, क्योंकि भक्त प्यासे हैं और गंगा जल से ही उन्हें शांति और मुक्ति की प्राप्ति हो सकती है। यहाँ गंगा जल का प्रतीक है शुद्धता, जीवनदायिनी शक्ति और शिव के साथ उनकी दिव्य कृपा का।

2.      शिव और गंगा का संबंध: गीत में भगवान शिव के गंगा के साथ संबंध का उल्लेख किया गया है। महर्षि भगीरथ की तपस्या के कारण भगवान शिव ने गंगा को अपनी जटाओं में धारण किया था, जिससे सगर के पुत्रों को मुक्ति मिली थी। यह घटना भगवान शिव की महानता और उनके भक्तों के प्रति करुणा का प्रतीक है।

3.      भक्ति और विश्वास की शक्ति: गीत में यह भी बताया गया है कि शिव पर विश्वास रखने से जीवन की कठिनाइयाँ दूर होती हैं। भक्‍त भगवान शिव से अपनी इच्छाओं की पूर्ति और मुक्ति की कामना करता है। वह शिव के गंगाजल की महिमा के साथ-साथ अपने जीवन की कठिनाईयों से उबरने की प्रार्थना करता है।

4.      कष्टों का निवारण: भक्‍त भगवान शिव से यह आग्रह करता है कि उनके जीवन के कष्टों और परेशानियों का अंत हो, और वह अपनी तपस्या का फल पाकर शांति और आशीर्वाद प्राप्त करें। यह भक्त की श्रद्धा और विश्वास का प्रतीक है कि भगवान शिव के बिना कुछ भी संभव नहीं है, और वह हर कठिनाई को अपने भक्तों से दूर कर सकते हैं।

5.      नंदी की सौगंध: गीत में नंदी की सौगंध का उल्लेख किया गया है, जो भगवान शिव के वाहन हैं। यह भक्त का श्रद्धा और विश्वास को दर्शाता है कि भगवान शिव उनके साथ हैं और उनके जीवन के हर पहलू में उनकी मदद करेंगे।

6.      भोले शंकर के प्रति विश्वास और समर्पण: गीत का एक महत्वपूर्ण भाव यह है कि भक्त भगवान शिव से पूरी श्रद्धा और विश्वास के साथ अपनी समस्याओं का समाधान चाहता है। वह कहता है कि अगर उसकी मनोकामना पूरी नहीं होती तो वह भगवान शिव के नाम का प्रचार नहीं करेगा, जो उनके प्रति उसकी अडिग श्रद्धा को प्रकट करता है।

कुल मिलाकर, यह गीत भगवान शिव की महिमा, उनके प्रति श्रद्धा और विश्वास को व्यक्त करता है। यह दर्शाता है कि भगवान शिव अपने भक्तों के कष्टों को दूर करने वाले, जीवन को सहज बनाने वाले और हमेशा उनकी मदद करने के लिए तत्पर रहते हैं। गीत में एक गहरी भक्ति और शिव के प्रति अपार प्रेम दिखाई देता है।

हे भोले शंकर पधारो बैठे छिप के कहाँ ।
गंगा जटा में तुम्हारी, हम प्यासे यहाँ ॥
महा सती के पति मेरी सुनो वंदना ।
आओ मुक्ति के दाता पड़ा संकट यहाँ ॥

बगीरथ को गंगा प्रभु तुमने दी थी,
सगर जी के पुत्रों को मुक्ति मिली थी ।
नील कंठ महादेव हमें है भरोसा है,
इच्छा तुम्हारी बिना कुछ भी नहीं होता ॥
हे भोले शम्भू पधारो किस ने रोके वहां,
आयो भसम रमयिया सब को तज के यहाँ ॥

मेरी तपस्या का फल चाहे लेलो,
गंगा जल अब अपने भक्तो को दे दो ।
प्राण पखेरू कहीं प्यासा उड़ जाए ना,
कोई तेरी करुना पे उंगली उठाए ना ॥
भिक्षा मैं मांगू जन कल्याण की,
इच्छा करो पूरी गंगा सनान की ॥
अब ना देर करो, आ के कष्ट हरो,
मेरी बात रख लो, मेरी लाज रख लो ॥


हे भोले गंगधार पधारो, डोरी टूट जाए ना,
मेरा जग में नहीं कोई तुम्हारे बिना ॥

नंदी की सौगंध तुमे, वास्ता कैलाश का,
बुझ ना देना दीया मेरे विशवास का ।
पूरी यदि आज ना हुई मनोकामना,
फिर दीनबंधू  होगा तेरा नाम ना ।
भोले नाथ पधारो, तुमने तारा जहां,
आओ महा सन्यासी अब तो आ जाओ ना ॥

जय भोले, जय भंडारी, तेरी है महिमा न्यारी

 जय भोले, जय भंडारी, तेरी है महिमा न्यारी

"जय भोले, जय भंडारी" एक लोकप्रिय भक्ति गीत है जो भगवान शिव की महिमा और उनके अद्वितीय गुणों को सराहता है। यह गीत भगवान शिव को "भोलेनाथ" और "भंडारी" के रूप में संबोधित करता है, जो उनकी सरलता, करुणा और समर्पण का प्रतीक हैं। इस गीत में शिव के दिव्य रूप, उनकी शक्ति और भक्तों के प्रति उनकी कृपा का वर्णन किया गया है।

गीत के प्रमुख बिंदुओं का वर्णन निम्नलिखित है:

1.      भगवान शिव की महिमा: गीत की शुरुआत में भगवान शिव की महानता का वर्णन किया गया है। "तेरी है महिमा न्यारी" का अर्थ है कि शिव की महिमा पूरी दुनिया से परे और अद्वितीय है। उनके बारे में जो भी कहा जाए, वह अपर्याप्त है। शिव की शक्ति, कृपा और उपकार की कोई सीमा नहीं है।

2.      शिव का सर्वव्यापी रूप: गीत में यह कहा गया है कि भगवान शिव हर कण में समाए हुए हैं – जल में, थल में, नभ में, और पवन में। इसका मतलब यह है कि भगवान शिव का अस्तित्व और उनकी शक्ति हर जगह व्याप्त है। उनका रूप और उनकी छवि हर जगह दिखाई देती है।

3.      शिव का संगीत और धुन: "डमरू की धुन में है, झूमे है सृष्टि" में भगवान शिव के डमरू की ध्वनि का उल्लेख किया गया है, जो समग्र सृष्टि को अपने ताल पर नचाती है। यह भगवान शिव की शक्ति और उनके प्रभाव को दर्शाता है, जो पूरी सृष्टि को गतिशील बनाता है।

4.      शिव की कृपा और वरदान: गीत में यह उल्लेख किया गया है कि भगवान शिव हमेशा अपने भक्तों पर कृपा बरसाते हैं। जो भी शिव की पूजा करता है या उनका ध्यान करता है, उसे सुख, समृद्धि और आशीर्वाद प्राप्त होते हैं। रावण को सोने की लंका देने और भगवान शिव के कैलाश पर्वत पर वास करने का संदर्भ देने से शिव के उपकार और भक्तों के प्रति उनके अनमोल योगदान को दर्शाया गया है।

5.      शिव की उपकारिता: भगवान शिव को "दानी" और "वरदानी" के रूप में पुकारा गया है, जो हर किसी के कष्टों को दूर करने और उन्हें शांति और सुख देने के लिए जाने जाते हैं। रावण की लंका को सोने से भरने का संदर्भ भगवान शिव की उदारता को उजागर करता है। साथ ही, यह भी कहा गया है कि भगवान शिव का उपकार अनमोल है और कोई अन्य देवता उनके जैसा उपकारी नहीं हो सकता।

6.      भोलेनाथ के प्रति भक्तों का श्रद्धा भाव: गीत में बार-बार "जय भोले" और "जय भंडारी" के उद्घोष से यह स्पष्ट होता है कि भक्त भगवान शिव के प्रति अपनी पूरी श्रद्धा और निष्ठा व्यक्त कर रहे हैं। "भोले" शब्द का प्रयोग भगवान शिव की सरलता, मासूमियत और सहजता को व्यक्त करता है, जो अपने भक्तों के कष्टों को सरलता से हर लेते हैं।

कुल मिलाकर, यह गीत भगवान शिव की अद्वितीयता, उनकी अनंत कृपा, और उनके भक्तों के प्रति अपार प्रेम का उत्सव है। यह भक्ति गीत भगवान शिव के गुणों को श्रवण करने, उनका ध्यान करने और उनकी उपासना में अपनी श्रद्धा अर्पित करने के लिए प्रेरित करता है।

जय भोले, जय भंडारी, तेरी है महिमा न्यारी
जय भोले, जय भंडारी, तेरी है महिमा न्यारी
तेरी मोहनी मूरत लगे है प्यारी

जय भोले, जय भंडारी, तेरी है महिमा न्यारी
तेरी मोहनी मूरत लगे है प्यारी
जय भोले, जय भंडारी, तेरी है महिमा न्यारी

कण-कण में है तेरा वास प्रभु
है तीनों लोक में तू ही तू

जल में है, थल में है, नभ में
पवन में है, तेरी छवि है समाई
डमरू की धुन में है, झूमे है सृष्टि
महिमा ये कैसी रचाई

तेरी जय-जय करे दुनिया सारी
जय भोले, जय भंडारी, तेरी है महिमा न्यारी

जिसने भी तेरा ध्यान किया
उसको सुख का वरदान दिया

दानी है, वरदानी है, भोले बाबा
है भक्तों पे उपकार तेरा
रावण को दे डाली सोने की लंका
किया आप परबत पे डेरा

नहीं दूजा कोई तुमसा है उपकारी
जय भोले, जय भंडारी, तेरी है महिमा न्यारी
जय भोले, जय भंडारी, तेरी है महिमा न्यारी

तेरी मोहनी मूरत लगे है प्यारी
जय भोले, जय भंडारी, तेरी है महिमा न्यारी
जय भोले, जय भंडारी, तेरी है महिमा न्यारी

ॐ नमः शिवाय

 ॐ नमः शिवाय

"ॐ नमः शिवाय" एक प्रसिद्ध और अत्यधिक पूजनीय मंत्र है, जिसे भगवान शिव की आराधना और भक्ति के लिए गाया जाता है। यह भक्ति गीत भगवान शिव के प्रति श्रद्धा, भक्ति और समर्पण का अद्भुत उदाहरण है। इस गीत के द्वारा भक्त भगवान शिव की महिमा का गुणगान करते हैं और उनकी कृपा प्राप्त करने के लिए प्रार्थना करते हैं।

गीत के प्रमुख बिंदुओं को इस प्रकार समझा जा सकता है:

1.      ॐ नमः शिवाय का जाप: गीत में "ॐ नमः शिवाय" मंत्र का जाप बार-बार किया गया है, जो भगवान शिव का अभिवादन और ध्यान करने का एक शास्त्रिक तरीका है। यह मंत्र विशेष रूप से शांति, शक्ति, और समर्पण का प्रतीक है।

2.      शिव की महिमा: गीत में भगवान शिव की अद्वितीयता और महिमा का वर्णन किया गया है। यह बताया गया है कि शिव शंकर ही सृष्टि के सृजनहार हैं और प्रत्येक कण में उनकी उपस्थिति है। वे अन्तर्यामी हैं, अर्थात् वे सभी के दिलों में समाहित हैं और सबकी शरण में आते हैं।

3.      शिव की कृपा और आशीर्वाद: गीत में यह संदेश दिया गया है कि भगवान शिव के आशीर्वाद से जीवन में सुख और शांति प्राप्त होती है। उनके संरक्षण में व्यक्ति के दुख-सुख में संतुलन आता है, और हर प्रकार की कठिनाइयाँ आसान हो जाती हैं।

4.      शिव भक्ति का महत्व: गीत में शिव भक्ति के रसपान और जीवन को ज्योतिर्मय बनाने का उल्लेख किया गया है। इसका अर्थ है कि जब हम शिव भक्ति करते हैं, तो हमारे जीवन में अंधकार से प्रकाश की ओर यात्रा होती है।

5.      शिव शंकर का गुणगान: यह गीत शिव शंकर के गुणों का बखान करता है, जैसे उनकी प्रेमपूर्ण और वात्सल्यपूर्ण शक्ति। वे भक्तों के सखा हैं और हर मनुष्य के हृदय में उनके प्रति श्रद्धा का स्थान बनाना चाहिए।

6.      शिव के प्रति समर्पण: गीत में यह भी बताया गया है कि शिव शंकर के चरणों में समर्पण और विश्वास रखने से जीवन के सभी कष्ट समाप्त हो जाते हैं और आत्मा को शांति मिलती है।

कुल मिलाकर, यह गीत भगवान शिव के प्रति गहरी श्रद्धा और भक्ति की अभिव्यक्ति है। इसमें शिव के चमत्कारी गुणों, उनके आशीर्वाद, और उनके प्रति अनन्य समर्पण का संदेश है। यह भक्ति गीत न केवल दिव्य शक्ति की महिमा का आभास कराता है, बल्कि भक्तों को जीवन में शांति, समृद्धि और संतुष्टि प्राप्त करने की प्रेरणा भी देता है।

ॐ नमः शिवाय

ॐ नमः शिवाय

ॐ नमः शिवाय

ॐ नमः शिवाय

ॐ नमः शिवाय

ॐ नमः शिवाय

नमः शिवाय

ॐ नमः शिवाय

नमः शिवाय

ॐ नमः शिवाय

ॐ नमः शिवाय

शिव शंकर का गुणगान करो

शिव भक्ति का

रसपान करो

जीवन ज्योतिर्मय

हो जाये

ज्योतिर्लिंगो का

ध्यान करो

शिव शंकर

का गुणगान करो

ॐ नमः शिवाय

ॐ नमः शिवाय

ॐ नमः शिवाय

ॐ नमः शिवाय

ॐ नमः

शिवाय शिवाय

ॐ नमः शिवाय

नमः शिवाय

ॐ नमः शिवाय

उसने ही जगत बनाया है

कण कण में वही समाया है

उसने ही जगत बनाया है

कण कण में वही समाया है

दुख भी सुख सही हर लेगा

सर पर जब शिव की छाया है

बोलो हर हर हर महादेव

हर मुश्किल को आसान करो

शिव शंकर का गुणगान करो

ॐ नमः शिवाय

ॐ नमः शिवाय

ॐ नमः शिवाय

ॐ नमः शिवाय

ॐ नमः शिवाय

ॐ नमः शिवाय शिवाय

ॐ नमः शिवाय शिवाय

शंकर तो है अन्तर्यामी

भक्तों के लिया सखा से है

शंकर तो है अन्तर्यामी

भक्तों के लिया सखा से है

भगवान भव के भूखे हैं

भगवान प्रेम के प्यासे हैं

मन के मंदिर में इसीलिये

शिव मंदिर का निर्माण करो

शिव शंकर का गुणगान करो

ॐ नमः शिवाय

ॐ नमः शिवाय

ॐ नमः शिवाय

ॐ नमः शिवाय

ॐ नमः शिवाय

ॐ नमः शिवाय

नमः शिवाय

शिव शंकर का गुणगान करो

शिव भक्ति का रसपान करो

जीवन ज्योतिर्मय हो जाये

ज्योतिर्लिंगो का ध्यान करो

शिव शंकर का गुणगान करो

ॐ नमः शिवाय

ॐ नमः शिवाय

ॐ नमः शिवाय

ॐ नमः शिवाय

ॐ नमः शिवाय

ॐ नमः शिवाय

नमः शिव

ॐ नमः शिवाय

नमः शिव

ॐ नमः शिवाय

नमः शिव

ॐ नमः शिवाय

ॐ नमः शिवाय

ॐ नमः शिवाय

ॐ नमः शिवाय शिवाय

ॐ नमः शिवाय शिवाय।

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