आरती कुंजबिहारी की,श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की
"आरती
कुंजबिहारी की" एक प्रसिद्ध भक्ति गीत है, जो भगवान श्री कृष्ण के प्रति गहरी श्रद्धा और प्रेम को व्यक्त करता है।
इस गीत का मुख्य विषय श्री कृष्ण की दिव्यता, सुंदरता और
उनके अद्वितीय रूपों का वर्णन है। यह गीत भगवान श्री कृष्ण की आरती के रूप में
गाया जाता है और विशेष रूप से भक्तों द्वारा उनकी पूजा के समय गाया जाता है।
गीत का भावार्थ और विवरण:
1.
"आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की":- इस शेर में भगवान श्री कृष्ण को विभिन्न नामों से सम्बोधित किया गया है,
जैसे "कुंजबिहारी" (जो वृंदावन के कुंजों में बसा है),
"गिरिधर" (गिरिराज गोवर्धन को उठाने वाले), और "कृष्ण मुरारी" (मुरारी का अर्थ है मुर की मुरारी या
राक्षसों का संहार करने वाला)। आरती के माध्यम से भक्त उनके अनंत रूपों और गुणों
का गुणगान कर रहे हैं।
2.
"गले में बैजंती माला, बजावै मुरली मधुर बाला":- श्री कृष्ण की
सुंदरता का चित्रण करते हुए बताया गया है कि उनके गले में बैजंती माला (एक प्रकार
की फूलों की माला) है और वह मधुर मुरली बजाते हुए बाला (किशोर) के रूप में नजर आते
हैं। उनकी मुरली की आवाज अत्यंत मीठी होती है, जो सभी को
आकर्षित करती है।
3.
"श्रवण में कुण्डल झलकाला,
नंद के आनंद नंदलाला":- इस पंक्ति में श्री कृष्ण के कानों में कुण्डल (बालियां) के बारे में
बताया गया है, जो उनकी सुंदरता को और भी बढ़ाते हैं। साथ ही
यह भी कहा गया है कि श्री कृष्ण नंदनंदन (नंद बाबा के पुत्र) हैं, जो नंद के आनंद का कारण हैं।
4.
"गगन सम अंग कांति काली, राधिका चमक रही आली":- भगवान श्री
कृष्ण का शरीर आकाश के समान उज्ज्वल और सुंदर है। उनके साथ राधिका (राधा) भी चमक
रही हैं, जो उनके प्रेम और महिमा का प्रतीक हैं।
5.
"लतन में ठाढ़े बनमाली; भ्रमर सी अलक, कस्तूरी तिलक, चन्द्र
सी झलक":- श्री कृष्ण के शरीर पर एक अद्वितीय आभूषण
है – उनका मुकुट और उनके बाल भ्रमर (मधुमक्खी) की तरह लहराते हैं। उनके माथे पर
कस्तूरी का तिलक और चेहरे पर चंद्रमा जैसी चमक है। इन सभी रूपों से उनकी दिव्यता
और आकर्षण का वर्णन किया गया है।
6.
"कनकमय मोर मुकुट बिलसै, देवता दरसन को तरसैं":- श्री कृष्ण के
सिर पर सुनहरे मोर मुकुट है, जो अत्यधिक चमकदार है। उनकी ऐसी
आकर्षक रूप रेखाएं हैं कि देवता भी उनके दर्शन के लिए तरसते हैं।
7.
"गगन सों सुमन रासि बरसै; बजे मुरचंग, मधुर मिरदंग":- श्री कृष्ण के आसपास आकाश से फूलों की वर्षा हो रही है और मुरचंग (एक
प्रकार का वाद्ययंत्र) और मृदंग (ढोल) की मधुर ध्वनियाँ सुनाई दे रही हैं। यह
दृश्य वृंदावन की मधुरता और रासलीला के आनंद को व्यक्त करता है।
8.
"जहां ते प्रकट भई गंगा, कलुष कलि हारिणि श्रीगंगा":- यह पंक्ति
भगवान श्री कृष्ण के जन्म स्थल, वृंदावन और उनके साथ जुड़ी
गंगा नदी का उल्लेख करती है। श्री कृष्ण के चरणों के स्पर्श से गंगा के जल में
शुद्धि और पवित्रता का आभास होता है।
9.
"चमकती उज्ज्वल तट रेनू, बज रही वृंदावन बेनू":- यहां वृंदावन
के सुंदर तटों का वर्णन है, जहाँ की रेत चमकती है और वहां की
बांसुरी की ध्वनि वातावरण में गूंज रही है। वृंदावन की मृदु और आकर्षक बंशी की
आवाज वातावरण को मधुर बनाती है।
10. "चहुं दिसि गोपि ग्वाल धेनू; हंसत मृदु मंद, चांदनी चंद":- वृंदावन के
चारों ओर गोपियाँ, ग्वाल और गायें हैं। सभी बहुत खुश और
आनंदित हैं। चांदनी रात में वातावरण बहुत सुंदर और शांतिपूर्ण है।
11. "कटत भव फंद; टेर सुन दीन भिखारी की":- भगवान श्री कृष्ण की आराधना से भक्तों के सारे सांसारिक बंधन कट जाते हैं।
उनकी महिमा सुनकर दीन-हीन व्यक्ति भी परम आनंद और शांति प्राप्त करते हैं।
समाप्ति में इस आरती के
माध्यम से भक्तों ने श्री कृष्ण के सभी रूपों, गुणों, उनकी मधुरता और दिव्यता का उल्लासपूर्वक गायन किया है। यह आरती श्रद्धा,
प्रेम और भक्ति की भावना से भरपूर होती है, जो
श्री कृष्ण के अनंत रूपों को प्रदर्शित करती है।
आरती कुंजबिहारी की,श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की।
गले में बैजंती माला,बजावै मुरली मधुर बाला।
श्रवण में कुण्डल झलकाला,नंद के आनंद नंदलाला।
गगन सम अंग कांति काली,राधिका चमक रही आली।
लतन में ठाढ़े बनमाली;भ्रमर सी अलक, कस्तूरी तिलक,
चन्द्र सी झलक;ललित छवि श्यामा प्यारी की॥
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की॥
आरती कुंजबिहारी की
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥ x2
कनकमय मोर मुकुट बिलसै,देवता दरसन को तरसैं।
गगन सों सुमन रासि बरसै;बजे मुरचंग, मधुर मिरदंग,
ग्वालिन संग;अतुल रति गोप कुमारी की॥
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की॥
आरती कुंजबिहारी की
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥ x2
जहां ते प्रकट भई गंगा,कलुष कलि हारिणि श्रीगंगा।
स्मरन ते होत मोह भंगा;बसी सिव सीस, जटा के बीच,
हरै अघ कीच;चरन छवि श्रीबनवारी की॥
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की॥
आरती कुंजबिहारी की
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥ x2
चमकती उज्ज्वल तट रेनू,बज रही वृंदावन बेनू।
चहुं दिसि गोपि ग्वाल धेनू;हंसत मृदु मंद,चांदनी चंद,
कटत भव फंद;टेर सुन दीन भिखारी की॥
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की॥
आरती कुंजबिहारी की
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥ x2
आरती कुंजबिहारी की,श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥
आरती कुंजबिहारी की,श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥
आरती कुंजबिहारी की
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥ x2