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बुधवार, 8 जनवरी 2025

नमो-नमो दुर्गे सुख करनी

 नमो-नमो दुर्गे सुख करनी

दुर्गा चालीसा:- यह अत्यंत प्रसिद्ध और शक्तिशाली भक्ति गीत है, जिसे देवी दुर्गा के विभिन्न रूपों की महिमा का वर्णन करते हुए गाया जाता है। "दुर्गा चालीसा" में देवी दुर्गा की शक्तियों, रूपों और उनके द्वारा किए गए महान कार्यों का विस्तार से वर्णन किया गया है। इसे विशेष रूप से नवरात्रि और अन्य पर्वों के दौरान श्रद्धा से गाया जाता है, और यह भक्तों के दिलों में दुर्गा माता के प्रति असीम श्रद्धा और भक्ति जागृत करता है।

1.      देवी की महिमा और शक्ति:
दुर्गा चालीसा की शुरुआत में देवी दुर्गा को "सुख करने वाली" और "दुःख हरने वाली" के रूप में पूजा जाता है। वे निराकार ज्योति के रूप में सम्पूर्ण ब्रह्मांड में फैली हुई हैं। उनका रूप अत्यन्त विकराल और दीन-हीन जनों के लिए मंगलकारी है।

2.      अन्नपूर्णा और जगपालन:
देवी दुर्गा को अन्नपूर्णा रूप में भी पूजा जाता है, क्योंकि वे ही संसार के पालनहार हैं और जीवन की आवश्यकताओं को पूरा करती हैं। वे ही ब्रह्मा, विष्णु और शिव के साथ जुड़े हुए हैं, और उनका ध्यान सब देवगण करते हैं।

3.      महाकाल और प्रलयकाल में देवी का रूप:
देवी दुर्गा का रूप महाकाल (काल के अंत में नाश करने वाली शक्ति) के रूप में प्रकट होता है। वे शिव के साथ अत्यंत प्रिय और गहन संबंध रखती हैं। जब प्रलय का समय आता है, तब वे शत्रुओं का संहार करती हैं।

4.      नरसिंह रूप और भक्तों की रक्षा:
देवी का नरसिंह रूप विशेष रूप से प्रह्लाद की रक्षा के लिए प्रकट हुआ था। वे भक्तों के संकट में हमेशा उनके साथ होती हैं और शत्रुओं का नाश करती हैं।

5.      लक्ष्मी और श्री नारायण के साथ देवी का संबंध:
देवी लक्ष्मी के रूप में भी प्रकट होती हैं, जो सम्पत्ति और ऐश्वर्य की देवी हैं। समुद्र मंथन में देवी लक्ष्मी का प्रकट होना और साथ ही श्री नारायण के अंग के रूप में उनका अस्तित्व अत्यधिक महत्वपूर्ण है।

6.      अम्बा का विकराल रूप:
देवी दुर्गा का रूप शुंभ-निशुंभ और महिषासुर के साथ युद्ध में अत्यधिक विकराल और रौद्र रूप में दिखाई देता है। वे राक्षसों का संहार करती हैं और धर्म की विजय सुनिश्चित करती हैं।

7.      दुष्टों का नाश और भक्तों की रक्षा:
देवी दुर्गा का स्वरूप कभी नरसिंह तो कभी महाकाल के रूप में प्रकट होकर दुष्टों का संहार करता है और भक्तों की रक्षा करता है। वे शरणागत वत्सल हैं, जो अपने भक्तों के संकट दूर करती हैं।

8.      भक्ति और पूजा का महत्व:
दुर्गा चालीसा का अंतिम संदेश यह है कि जो भी भक्त सच्चे मन से माता दुर्गा का ध्यान करता है, वह संसार के सभी दुखों से मुक्त होता है। भक्ति से ही व्यक्ति जीवन में सुख, समृद्धि और मोक्ष प्राप्त करता है।
"दुर्गा चालीसा" में देवी दुर्गा के अनेक रूपों का बखान किया गया है—जिनमें उनकी शक्ति, दया, और करुणा का अद्भुत मिश्रण है। यह चालीसा न केवल देवी के युद्ध कौशल और दैवी शक्तियों का उत्सव है, बल्कि यह हर भक्त को देवी की शक्ति का आशीर्वाद पाने का एक रास्ता भी दिखाती है। अगर कोई इस चालीसा को श्रद्धा और विश्वास से गाता है, तो उसे देवी दुर्गा की कृपा अवश्य प्राप्त होती है।

यह गीत हमें यह सिखाता है कि हर कष्ट और संकट के बाद भी देवी दुर्गा हमें आशीर्वाद देती हैं और जीवन के हर क्षेत्र में सफलता, सुख और समृद्धि का मार्ग प्रशस्त करती हैं।

नमो-नमो दुर्गे सुख करनी
नमो-नमो अम्बे दुःख हरनी
निरंकार है ज्योति तुम्हारी
तिहुँ लोक फैली उजियारी

शशि ललाट मुख महाविशाला
नेत्र लाल भृकुटि विकराला
रूप मातु को अधिक सुहावे
दरश करत जन अति सुख पावे

तुम संसार शक्ति लै कीना
पालन हेतु अन्न धन दीना
अन्नपूर्णा हुई जग पाला
तुम ही आदि सुन्दरी बाला

प्रलयकाल सब नाशन हारी
तुम गौरी शिवशंकर प्यारी
शिव योगी तुम्हरे गुण गावें
ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावें

रूप सरस्वती को तुम धारा
दे सुबुद्धि ऋषि मुनिन उबारा
धरयो रूप नरसिंह को अम्बा
परगट भई फाड़कर खम्बा

रक्षा करि प्रह्लाद बचायो
हिरण्याक्ष को स्वर्ग पठायो
लक्ष्मी रूप धरो जग माहीं
श्री नारायण अंग समाहीं

क्षीरसिन्धु में करत विलासा
दयासिन्धु दीजै मन आसा
हिंगलाज में तुम्हीं भवानी
महिमा अमित न जात बखानी

मातंगी धूमावति माता
भुवनेश्वरी बगला सुख दाता
श्री भैरव तारा जग तारिणी
छिन्न भाल भव दुःख निवारिणी

केहरि वाहन सोह भवानी
लांगुर वीर चलत अगवानी
कर में खप्पर खड्ग विराजै
जाको देख काल डर भाजै

सोहै कर में अस्त्र त्रिशूला
जाते उठत शत्रु हिय शूला
नगरकोट में तुम्हीं विराजत
तिहुंलोक में डंका बाजत

शुंभ निशुंभ दानव तुम मारे
रक्तबीज शंखन संहारे
महिषासुर नृप अति अभिमानी
जेहि अघ भार मही अकुलानी

रूप कराल कालिका धारा
सेन सहित तुम तिहि संहारा
परी भीड़ संतन पर जब-जब
भई सहाय मातु तुम तब-तब

अमरपुरी अरु बासव लोका
तब महिमा सब कहें अशोका
ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी
तुम्हें सदा पूजें नर-नारी

प्रेम भक्ति से जो यश गावें
दुःख दारिद्र निकट नहिं आवें
ध्यावे तुम्हें जो नर मन लाई
जन्म-मरण ते सो छुटि जाई

जोगी सुर मुनि कहत पुकारी
योग न हो बिन शक्ति तुम्हारी
शंकर आचारज तप कीनो
काम अरु क्रोध जीति सब लीनो

निशिदिन ध्यान धरो शंकर को
काहु काल नहिं सुमिरो तुमको
शक्ति रूप का मरम न पायो
शक्ति गई तब मन पछतायो

शरणागत हुई कीर्ति बखानी
जय-जय-जय जगदम्ब भवानी
भई प्रसन्न आदि जगदम्बा
दई शक्ति नहिं कीन विलम्बा

मोको मातु कष्ट अति घेरो
तुम बिन कौन हरै दुःख मेरो
आशा तृष्णा निपट सतावें
रिपू मुरख मौही अति डरपावे

शत्रु नाश कीजै महारानी
सुमिरौं इकचित तुम्हें भवानी
करो कृपा हे मातु दयाला
ऋद्धि-सिद्धि दै करहु निहाला

जब लगि जिऊं दया फल पाऊँ
तुम्हरो यश मैं सदा सुनाऊँ
दुर्गा चालीसा जो गावै
सब सुख भोग परमपद पावै

देवीदास शरण निज जानी
करहु कृपा जगदम्ब भवानी

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