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मंगलवार, 22 अक्टूबर 2024

श्री हनुमान चालीसा

 श्री हनुमान चालीसा

"हनुमान चालीसा" भगवान हनुमान को समर्पित एक पूजनीय भक्ति भजन है। इसमें 40 छंद (चालीसा का मतलब चालीस) हैं जो हनुमान की शक्तिभक्ति और चमत्कारी शक्तियों की प्रशंसा करते हैं।

यदि आप एक संक्षिप्त संस्करण या सारांश की तलाश में हैंतो यह आमतौर पर निम्नलिखित विषयों पर प्रकाश डालता है:

1. भक्ति और विश्वास:- हनुमान के प्रति अटूट भक्ति के महत्व पर जोर देता है।

2. शक्ति और सुरक्षा:- हनुमान की अपार शक्ति और बुराई से बचाने वाले के रूप में उनकी भूमिका का जश्न मनाता है।

3. समर्पण और आशीर्वाद:- आशीर्वाद और मार्गदर्शन के लिए हनुमान के सामने समर्पण करने को प्रोत्साहित करता है।

दोहा 

श्रीगुरु चरन सरोज रजनिज मनु मुकुर सुधारि |

वरनउ रघुवर विमल जसुजो दायकु फल चारि ||

बुद्धिहीन तनु जानिकेसुमिरौं पवन-कुमार |

बल बुद्धि विद्या देहु मोहिंहरहु कलेश विकार ||

चौपाई 

जय हनुमान ज्ञान गुन सागरजय कपीस तिहुं लोक उजागर |

राम दूत अतुलित बल धामाअंजनि-पुत्र पवन-सूत नामा |

महावीर विक्रम बजरंगीकुमति निवार सुमति के संगी |

कंचन वरन विराज सुबेसाकानन कुंडल कुंचित केसा |

हाथ वज्र और ध्वजा विराजेकांधे मूंज जनेऊ साजे |

शंकर सुवन केसरी नंदनतेज प्रताप महा जग बंदन |

विद्यावान गुणी अति चातुरराम काज करिबे को आतुर |

प्रभु चरित्र सुनिबे को रसियाराम लखन सीता मन बसिया |

सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखायाविकट रूप धरि लंक जरावा |

भीम रूप धरि असुर संहारेरामचन्द्र जी के काज संवारे |

लाय संजीवन लखन जियायेश्री रघुबीर हरषि उर लाये |

रघुपति किन्हीं बहुत बड़ाईतुम मम प्रिय भरतहि सम भाई |

सहस बदन तुम्हरो जस गावैंअस कहि श्रीपति कंठ लगावैं |

सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसानारद सारद सहित अहिसा |

यम कुबेर दिगपाल जहाँ तेकबि कोविद कहि सके कहाँ ते |

तुम उपकार सुग्रीवहि कीन्हाराम मिलाय राज पद दीन्हा |

तुम्हरो मंत्र विभीषन मानालंकेश्वर भए सब जग जाना |

युग सहस्त्र जोजन पर भानूलील्यो ताहि मधुर फल जानू |

प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहींजलधि लांघ गये अचरज नाहीं |

दुर्गम काज जगत के जेतेसुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते |

राम दुआरे तुम रखवारेहोत न आज्ञा बिनु पैसारे |

सब सुख लहै तुम्हारी सरनातुम रक्षक काहू को डरना |

आपन तेज सम्हारो आपैतीनों लोक हांक ते कांपै |

भूत पिशाच निकट नहि आवैमहावीर जब नाम सुनावै |

नासै रोग हरे सब पीराजपत निरंतर हनुमत बीरा |

संकट तें हनुमान छुड़ावैमन क्रम वचन ध्यान जो लावै |

सब पर राम तपस्वी राजातिनके काज सकल तुम साजा |

और मनोरथ जो कोई लावैसोई अमित जीवन फल पावै |

चारो जुग प्रताप तुम्हाराहै प्रसिद्ध जगत उजियारा |

साधु संत के तुम रखवारेअसुर निकंदन राम दुलारे |

अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाताअस बर दीन जानकी माता |

राम रसायन तुम्हारे पासासदा रहो रघुपति के दासा |

तुम्हरे भजन राम को भावेजनम जनम के दुख बिसरावै |

अंत काल रघुबर पुर जाईजहाँ जन्म हरि-भक्ति कहाई |

और देवता चित्त न धरईहनुमत सेई सर्व सुख करई |

संकट कटे मिटे सब पीराजो सुमिरै हनुमत बलबीरा |

जे जे जे हनुमान गोसाईकृपा करहु गुरु देव की नाई |

जो सत बार पाठ करे कोईछुटहिं बंदि महा सुख होई |

जो यह पढ़े हनुमान चालीसाहोय सिद्धि साखी गौरीसा |

तुलसीदास सदा हरि चेराकीजै नाथ हृदय महँ डेरा |

|| दोहा ||

पवन तनय संकट हरनमंगल मुरति रूप |

राम लखन सीता सहितहृदय बसहु सुर भूप ||

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