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गुरुवार, 31 अक्टूबर 2024

गुरु-गोबिंद दो खड़े, काके लागो पाय

गुरु-गोबिंद दो खड़े, काके लागो पाय

यह गीत दास कबीर की सृजनात्मकता और गहनता का अद्भुत उदाहरण है। कबीर की रचनाएँ उनकी गहरी सूझबूझअनुभव और मानवता के प्रति प्रेम को दर्शाती हैं। इस गीत में कई महत्वपूर्ण विचार और शिक्षाएँ शामिल हैं:

गुरु और गोबिंद: कबीर इस प्रश्न के माध्यम से बताते हैं कि जब गुरु और भगवान दोनों सामने होंतो हमें गुरु का आदर करना चाहिए क्योंकि वे ज्ञान और मार्गदर्शन देते हैं।

बड़ाई का अर्थ: वे इस धारणा को चुनौती देते हैं कि केवल बड़ा होना महत्वपूर्ण हैजैसे खजूर का पेड़जो दूसरों के लिए उपयोगी नहीं है।

सच्ची वाणी: कबीर का उद्देश्य ऐसी वाणी बोलना हैजो दूसरों को शांति प्रदान करे और स्वयं भी मन को शांति में लाए।

आत्म-खोज: जब कबीर कहते हैं कि उन्होंने बुराई की खोज कीलेकिन उन्हें कोई बुरा नहीं मिलातो इसका मतलब है कि जब हम दूसरों के दोषों को खोजने में लगे होते हैंतब हम अपनी बुराइयों से अनजान रह जाते हैं।

समय का महत्व: कबीर यह बताते हैं कि समय का सदुपयोग करना चाहिएक्योंकि कल का क्या भरोसा है।

ज्ञान और प्रेम: वे यह स्पष्ट करते हैं कि केवल पुस्तकों का अध्ययन करने से ज्ञान नहीं मिलतासच्चा ज्ञान प्रेम में निहित है।

दुख और सुख: कबीर यह प्रश्न उठाते हैं कि यदि सुख में भी भगवान का स्मरण किया जाए तो दुख क्यों आएगा।

आत्म-स्वामित्व: कबीर कहते हैं कि हमारा कुछ भी नहीं हैसब कुछ ईश्वर का है।

साधु का ज्ञान: वे जाति को छोड़कर साधु के ज्ञान की बात करते हैंजो कि असली मूल्य है।

निंदक की महत्ता: कबीर निंदकों को अपने निकट रखने की सलाह देते हैंक्योंकि वे हमें सुधारने में मदद करते हैं।

कबीर की ये रचनाएँ आज भी लोगों को जीवन के गूढ़ अर्थों को समझाने में मदद करती हैं और सच्चे ज्ञान और प्रेम की ओर प्रेरित करती हैं। उनकी भाषा सरल लेकिन प्रभावशाली हैजो सीधे दिल को छूती है।

गुरु-गोबिंद दो खड़ेकाके लागो पाय?
गुरु-गोबिंद दो खड़ेकाके लागो पाय?
बलिहारी गुरुआपने गोबिंद दियो बताय
कबीरागोबिंद दियो बताय

बड़ा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर?
बड़ा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर?
पंथी को छाया नहींफल लागे अति दूर
कबीराफल लागे अति दूर

ऐसी बानी बोलिए मन का आपा खोय
ऐसी बानी बोलिए मन का आपा खोय
औरन को सीतल करेआपहुँ सीतल होय
कबीराआपहुँ सीतल होय

बुरा जो देखन मैं चलाबुरा ना मिलिया कोय
बुरा जो देखन मैं चलाबुरा ना मिलिया कोय
जो मन खोजा आपनामुझसे बुरा ना कोयकबीरा
मुझसे बुरा ना कोय

माटी कहे कुम्हार से, "तू क्या रौंदे मोय?"
माटी कहे कुम्हार से, "तू क्या रौंदे मोय?"
एक दिन ऐसा आएगामैं रौंदूँगी तोयकबीरा
मैं रौंदूँगी तोय"

काल करे सो आज करआज करे सो अब
काल करे सो आज करआज करे सो अब
पल में परलय होएगीबहुरी करेगा कबकबीरा?
बहुरी करेगा कब?

माया मरीना मन मरामर-मर गए शरीर
माया मरीना मन मरामर-मर गए शरीर
आस्था-तृष्णा ना मरी कह गए दास कबीर
रे बंधुकह गए दास कबीर

पोथी पढ़-पढ़ जग मुआपंडित भया ना कोय
पोथी पढ़-पढ़ जग मुआपंडित भया ना कोय
ढाई अक्षर प्रेम का पढ़े सो पंडित होयकबीरा
पढ़े सो पंडित होय

दुख में सुमिरन सब करेंसुख में करे ना कोय
दुख में सुमिरन सब करेंसुख में करे ना कोय
जो सुख में सुमिरन करे तो दुख काहे होयकबीरा?
तो दुख काहे होय?

मेरा मुझमें कुछ नहींजो कुछ हैसो तेरा
मेरा मुझमें कुछ नहींजो कुछ हैसो तेरा
तेरा तुझको सौंपते क्या लागे है मेराकबीरा?
क्या लागे है मेरा?

जाति ना पूछो साधु कीपूछ लीजियो ज्ञान
जाति ना पूछो साधु कीपूछ लीजियो ज्ञान
मोल करो तलवार कापड़ी रहन दो म्यान
कबीरापड़ी रहन दो म्यान

निंदक नियरे राखिएआँगन कुटी छवाय
निंदक नियरे राखिएआँगन कुटी छवाय
बिन पानीसाबुन बिननिर्मल करे सुहाय
कबीरानिर्मल करे सुहाय

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