गुरु-गोबिंद दो खड़े, काके लागो पाय
यह गीत दास कबीर की
सृजनात्मकता और गहनता का अद्भुत उदाहरण है। कबीर की रचनाएँ उनकी गहरी सूझबूझ, अनुभव और मानवता के प्रति प्रेम को दर्शाती हैं। इस गीत
में कई महत्वपूर्ण विचार और शिक्षाएँ शामिल हैं:
गुरु और गोबिंद: कबीर इस प्रश्न के माध्यम से बताते हैं कि जब गुरु और
भगवान दोनों सामने हों, तो हमें गुरु का आदर करना चाहिए
क्योंकि वे ज्ञान और मार्गदर्शन देते हैं।
बड़ाई का अर्थ: वे इस धारणा को चुनौती देते हैं कि केवल बड़ा होना
महत्वपूर्ण है, जैसे खजूर का पेड़, जो दूसरों के लिए उपयोगी नहीं है।
सच्ची वाणी: कबीर का उद्देश्य ऐसी वाणी बोलना है, जो दूसरों को शांति प्रदान करे और स्वयं भी मन को शांति में लाए।
आत्म-खोज: जब कबीर कहते हैं कि उन्होंने बुराई की खोज की, लेकिन उन्हें कोई बुरा नहीं मिला, तो इसका मतलब
है कि जब हम दूसरों के दोषों को खोजने में लगे होते हैं, तब हम अपनी बुराइयों से अनजान रह जाते हैं।
समय का महत्व: कबीर यह बताते हैं कि समय का सदुपयोग करना चाहिए, क्योंकि कल का क्या भरोसा है।
ज्ञान और प्रेम: वे यह स्पष्ट करते हैं कि केवल पुस्तकों का अध्ययन करने
से ज्ञान नहीं मिलता; सच्चा ज्ञान प्रेम में निहित है।
दुख और सुख: कबीर यह प्रश्न उठाते हैं कि यदि सुख में भी भगवान का
स्मरण किया जाए तो दुख क्यों आएगा।
आत्म-स्वामित्व: कबीर कहते हैं कि हमारा कुछ भी नहीं है, सब कुछ ईश्वर का है।
साधु का ज्ञान: वे जाति को छोड़कर साधु के ज्ञान की बात करते हैं, जो कि असली मूल्य है।
निंदक की महत्ता: कबीर निंदकों को अपने निकट रखने की सलाह देते हैं, क्योंकि वे हमें सुधारने में मदद करते हैं।
कबीर की ये रचनाएँ
आज भी लोगों को जीवन के गूढ़ अर्थों को समझाने में मदद करती हैं और सच्चे ज्ञान और
प्रेम की ओर प्रेरित करती हैं। उनकी भाषा सरल लेकिन प्रभावशाली है, जो सीधे दिल को छूती है।
गुरु-गोबिंद दो खड़े, काके लागो पाय?
गुरु-गोबिंद दो खड़े, काके लागो पाय?
बलिहारी गुरु, आपने गोबिंद दियो बताय
कबीरा, गोबिंद दियो बताय
बड़ा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर?
बड़ा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर?
पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर
कबीरा, फल लागे अति दूर
ऐसी बानी बोलिए मन का आपा खोय
ऐसी बानी बोलिए मन का आपा खोय
औरन को सीतल करे, आपहुँ सीतल होय
कबीरा, आपहुँ सीतल होय
बुरा जो देखन मैं चला, बुरा ना मिलिया कोय
बुरा जो देखन मैं चला, बुरा ना मिलिया
कोय
जो मन खोजा आपना, मुझसे बुरा ना कोय, कबीरा
मुझसे बुरा ना कोय
माटी कहे कुम्हार से, "तू क्या रौंदे मोय?"
माटी कहे कुम्हार से, "तू क्या रौंदे मोय?"
एक दिन ऐसा आएगा, मैं रौंदूँगी तोय, कबीरा
मैं रौंदूँगी तोय"
काल करे सो आज कर, आज करे सो अब
काल करे सो आज कर, आज करे सो अब
पल में परलय होएगी, बहुरी करेगा कब, कबीरा?
बहुरी करेगा कब?
माया मरी, ना मन मरा, मर-मर गए शरीर
माया मरी, ना मन मरा, मर-मर गए शरीर
आस्था-तृष्णा ना मरी कह गए दास कबीर
रे बंधु, कह गए दास कबीर
पोथी पढ़-पढ़ जग मुआ, पंडित भया ना कोय
पोथी पढ़-पढ़ जग मुआ, पंडित भया ना कोय
ढाई अक्षर प्रेम का पढ़े सो पंडित होय, कबीरा
पढ़े सो पंडित होय
दुख में सुमिरन सब करें, सुख में
करे ना कोय
दुख में सुमिरन सब करें, सुख में करे ना
कोय
जो सुख में सुमिरन करे तो दुख काहे होय, कबीरा?
तो दुख काहे होय?
मेरा मुझमें कुछ नहीं, जो कुछ है, सो तेरा
मेरा मुझमें कुछ नहीं, जो कुछ है, सो तेरा
तेरा तुझको सौंपते क्या लागे है मेरा, कबीरा?
क्या लागे है मेरा?
जाति ना पूछो साधु की, पूछ लीजियो ज्ञान
जाति ना पूछो साधु की, पूछ लीजियो ज्ञान
मोल करो तलवार का, पड़ी रहन दो म्यान
कबीरा, पड़ी रहन दो म्यान
निंदक नियरे राखिए, आँगन कुटी छवाय
निंदक नियरे राखिए, आँगन कुटी छवाय
बिन पानी, साबुन बिन, निर्मल करे सुहाय
कबीरा, निर्मल करे सुहाय
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